शायरी
कॅलेंडर में दिन तो बहुत होते हैं .
बस दिन गिन्ते गिन्ते ज़िन्दगी गुजर जानी है.
क्या खोया क्या पाया हिसाब करना बाकी रह गया
जी रहा हूँ यूँही बस अभिभी किश्ते थोडी बाकी है.
बस दिन गिन्ते गिन्ते ज़िन्दगी गुजर जानी है.
क्या खोया क्या पाया हिसाब करना बाकी रह गया
जी रहा हूँ यूँही बस अभिभी किश्ते थोडी बाकी है.
वो राते मुलाकाते शायद हि भूल सकू
बिखरी यादोंको भी समेटना था
शायद ही उतना जी सकु ...
बिखरी यादोंको भी समेटना था
शायद ही उतना जी सकु ...
Phale subah aati thi ek hasin muskan bankar
Aur ab din dhal gaya kaise kisiko khabar nahi.
Aur ab din dhal gaya kaise kisiko khabar nahi.
रोज मर्रा की जिंदगी में ख्वाब देखना भी
एक ख्वाब सा बन गया है।
सुकून भरी नींद मिले
बस इतना सा ख्वाब बन गया है।
एक ख्वाब सा बन गया है।
सुकून भरी नींद मिले
बस इतना सा ख्वाब बन गया है।
रिश्तों को समझने में पुरी जिंदगी निकल जाती है।
और उसे निभाते निभाते सारी उम्र निकल जाती है।
जोडते जोडते जुडना मैने जुडते हुए सिखा
और तुटते हुए तारे को देख एक नया सपना देखा
शर्म भी जिंदा थी कभी इस अंजान दुनिया में.
शर्म अब शरमिंदा होके बेशरम हो गयी दुनियादारी मी उलझके.
रिश्तों को समझने में पुरी जिंदगी निकल जाती है।
और उसे निभाते निभाते सारी उम्र निकल जाती है।
और उसे निभाते निभाते सारी उम्र निकल जाती है।
रिश्तों को समझने में पुरी जिंदगी निकल जाती है।
और उसे निभाते निभाते सारी उम्र निकल जाती है।
और उसे निभाते निभाते सारी उम्र निकल जाती है।
रिश्तों को समझने में पुरी जिंदगी निकल जाती है।
और उसे निभाते निभाते सारी उम्र निकल जाती है।
और उसे निभाते निभाते सारी उम्र निकल जाती है।
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